रिपोर्ट मोहम्मद असलम रजा़ डाला/सोनभद्र। संतान की मंगलकामना व दीर्घायु को लेकर गुरुवार को महिलाओं ने जीवित्पुत्रिका व्रत रखा।हर स...
रिपोर्ट मोहम्मद असलम रजा़
डाला/सोनभद्र। संतान की मंगलकामना व दीर्घायु को लेकर गुरुवार को महिलाओं ने जीवित्पुत्रिका व्रत रखा।हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह व्रत किया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया या जिउतिया व्रत भी कहा जाता है। सुहागिन स्त्रियां इस दिन निर्जला उपवास करती हैं। महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए इस व्रत को रखती हैं। यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के कई क्षेत्रों में किया जाता है इसी के साथ साथ आज डाला के सेवा सदन,बारी,नई बस्ती एवं मलिन बस्ती आदि जगहों पर महिलाएँ एकत्रित होकर विधि-विधान से पुजा-पाठ किया।
उत्तर पूर्वी राज्यों में जीवित्पुत्रिका व्रत बहुत लोकप्रिय है।
*जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व :*
जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन सुहागन स्त्रियां संतान प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। साथ ही यह व्रत संतान की खुशहाली और समृद्धि के लिए भी किया जाता है। मानते हैं कि इस व्रत को करने से संतान की लंबी उम्र होती है। इस व्रत को वंश वृद्धि के लिए बहुत कारगर माना जाता है। कहते हैं कि जो स्त्रियां अपनी संतान के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत करती हैं। उनकी संतान को चारों ओर से यश की प्राप्ति होती है।
*जीवित्पुत्रिका व्रत कथा :*
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। प्राचीन कथाओं के मुताबिक महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद अश्वत्थामा अपने पिता की मृत्यु का बदला लेना चाहता था। इसी बदले की आग में वह रात में छुप कर पांडवों के स्थान पर गया। वहां जाकर उसने पांडव समझकर पांडवों के पांच पुत्रों को मार डाला।पांडवों को अश्वत्थामा की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया इसलिए अर्जुन ने अश्वत्थामा की मणि छीन ली। जिसके बाद अश्वत्थामा पांडवों से और अधिक क्रोधित हो गया। उसने योजना बनाई कि वह उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को भी जान से मार देगा। इसके लिए उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया।भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि ब्रह्मास्त्र को रोक पाना असंभव है। लेकिन उन्हें पांडवों के पुत्र को भी बचाना था। इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल एकत्रित कर उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को दिया। इसके फलस्वरूप वह बच्चा पुनर्जीवित हो गया। यह बच्चा ही बड़ा होकर राजा परीक्षित बना। उत्तरा के बच्चे को पुनर्जीवित करने की वजह से ही इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका व्रत पड़ा। तब से ही संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाने लगा।
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