प्रतीकात्मक तस्वीर डा ० दिलीप कुमार झा पत्रकार झारखंड । आपने अपने ...
प्रतीकात्मक तस्वीर
डा ० दिलीप कुमार झा पत्रकार झारखंड । आपने अपने जीवन में गुलामी,दासता बंधन ,आपके ऊपर किसी और का नियंत्रण भले ही वो आपके सुंदर भविष्य के लिए ही हो ।बचपन में माता पिता बड़े बुजुर्गों की हिदायत गुरु जी की छड़ियां ,बड़े भाई बहनों का अनुशासन के लिए जलील करना ,सामाजिक धार्मिक संस्कार और ज्ञान प्राप्त करने की शिक्षा , घुड़की ,दंड ,नफरत की नजर ,अपमान जनक नजरें ,आपकी असफलताओं पर आपको खरी खोटी सुननी पड़ी है ? ये वो लोग थे जो आपके भविष्य के लिए आपसे दुश्मनों की तरह व्यवहार करते थे और कभी कभी आपकी शारीरिक निर्बलता की वजह से बेबस बना कर आपके मन के विरुद्ध आपसे कराया जाता था बचपन में । उस वक्त आपके दिमागी प्रतिक्रिया क्या होती होगी ये हर इंसानों ने झेला है और उन्हें याद भी होगा । ये तो आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए किए गए आप पर नियंत्रण कर सही मार्ग पर लाने की कोशिशें थी । और आप इन सबको तोड़ते हुए बंधन मुक्त इयंतरण मुक्त होने के लिए अपनी सारी कोशिशें कर चुके होंगे । उसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए अब स्वतंत्रता के महत्व को हम एहसास कर चिंतन मनन करते हैं कोई राष्ट्र आप के देशों पर बल पूर्वक आपके देशों पर आक्रमण कर आपके देश को गुलाम बना लेते हैं । और वो जुल्म आपके अधिकारों का हनन कर अपने आदेशों के द्वारा आपको कार्य करने को मजबूर करता है चाहे वो अनैतिक और अधार्मिक ही क्यों न हो या आपकी इच्छा के विरुद्ध ही क्यों न हो लेकिन आपको सिर्फ पालन करना होता है जिसमे आपकी खुद्दारी ईमानदारी और स्वभाव के विपरीत लिया गया कोई लिया गया फैसला हो ।हजारों वर्षों की गुलामी करते करते हमारी रग रग में चापलूसी ,दरबारी भांड का एक नया व्यक्तित्व निर्माण कर अपनी पूर्वजों द्वारा उपलब्ध कराए गए सभ्यता ,संस्कृति संस्कार शिक्षा ,भाषा,मर्यादाओं और परंपराओं के साथ चलना छोड़ हम उनकी नीति उनकी शिक्षा उनके संस्कार और ज्ञान और चाल चलन को बड़ी गंभीरता से अवलोकन करते हुए उसे आत्मसात कर लेते हैं और हजारों वर्ष की उपलब्धियों को जो हमारे पूर्वजों ने हमे दी थी उसका परित्याग कर देते है। हमारी मानसिकता इस कदर गिर जाति है कि स्वतंत्रता और गुलामी में हमे कोई फर्क नहीं पड़ती है । जिसने गुलामी देखी नही उसे स्वतंत्रता का मजा और आनंद भी कभी आ नही सकता ।
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