रिपोर्ट हिमांशु सेंगर कालपी कालपी (जालौन) सुना है जिसका कोई नहीं उसका खुदा होता है पर ये कहावत कालपी के लिए सिर्फ कहावत ही सिद...
रिपोर्ट हिमांशु सेंगर कालपी
कालपी (जालौन)
सुना है जिसका कोई नहीं उसका खुदा होता है पर ये कहावत कालपी के लिए सिर्फ कहावत ही सिद्ध हो रही है।
इसकी तो खुदा भी रखवाली नहीं कर पा रहा है। कितने सूफी संत फकीरों सप्त ऋषि मुनियों की कर्म जन्म तपो भूमि है फिर क्यों विनाश की ओर बढ़ती जा रही है।
सैकड़ों वर्ष पुरानी ऐतिहासिक पौराणिक धरोहरें जमीजोद हो रहीं हैं सारे परम्परा गत व्यापार कागज कपड़ा कालीन समाप्त हो रहे हैं न सड़कें बची न नबस स्टेंड न यात्री प्रतीक्षालय न रैन बसेरा न धर्मशाला न खेल के मैदान नकोई बड़ा शिक्षण संस्थान न कोई नेता न कोई समाज सेवी आखिर ऐसा क्यों क्या हो गया अपने नगर को किसकी नजर लग गई बुन्देलखण्ड के प्रवेश द्वार की परधि अड़तालीस किलो मीटर लम्बा, चौबिस किलो मीटर चौड़ा क्षेत्रफल वाला
५२ गांवों का एक महानगर था, 1805 में बना थाना कालपी से कानपुर झांसी,का क्षेत्र जुड़ा था, कालपी में कमिश्नर बैठता था, चुर्खी, आटा तहसील थी | कालपी नगर पालिका का गठन सितम्बर 1858 में हुआ था | कालपी चार विशाल दरवाजों के अन्दर खूबसूरत बाजार का मालिक था कालपी ।
देश विदेश में दलहन, तिलहन मसाला आदि का व्यापार छाया था हाथ से निर्मित कालपी का कागज और बेहतरीन डिजाइन तथा खूबसूरत कला से बनी रंग बिरंगी कालीन जिसे देखकर देशी विदेशी व्यापारी हतप्रभ रह जाते थे कपड़े में टेरीकाट जिसके नाम में ही कालपी जुड़ गया था और कालपी टेरीकाट के नाम से ही बाजारों में अपनी धाक जमा ली थी आखिर ये सब कहां और क्यों विलुप्त हो गया। आखिर कहां गए वो दिन जब नगर की हर गली में कागज की फैक्ट्रियों में दिन रात काम होता था फिर भी आर्डर पूरा नहीं हो पाता था लगभग हर दसवें घर में पावर लूम दिन रात धड़धड़ाती थी हर बीसवें घर से कालीन का नक्सा बोलने की आवाजें लाल ब्याईं, हरा ब्याईं , काला बच्चा के मधुर स्वर कांनो को सुकून देते थे सब समाप्त हो गया आखिर क्यों ?
सुनते हैं नगर में बड़े बड़े दानी धर्मी रईस लोग थे जिन्होंने तमाम मन्दिर मस्जिदें बनवाई बड़े बड़े भंडारे कराऐ यहां तक सुना है कि ट्रेनों तक को रोक कर यात्रियों को भोजन कराया लंका जैसी मीनार बनवा दी मुन्ना लाल खद्री जिन्होंने धर्म शाला बनवाया था, उनके और भी किस्से सुने एक बात और सुनी एक जम्बूद्वीप ( जम्बू काश्मीर) का व्यापारी
१०० ऊंटों में केसर ले कर बेचने निकला देश में घूमता रहा एक साथ पूरी केंसर खरीदने वाला उसे कालपी में ही मिला और खरीने वाले ने भी सारी केसर इमारत की नींव और बनने वाले मसाले में मिलवा दी । इसी तरह चौरासी गुम्बद ,काली हवेली, श्रीदरवाजा, रंग महल, टोडरमल की कचहरी आदि से जुड़ी हुई कहानियां भी सुनने में बहुत अजीब और दिलचस्प हैं । पर क्या ये सब कहानियां ही है, य इसमें कुछ हकीकत भी है, पर आज इस नगर की स्थिति को देखने पर इन कहानियों की विश्वसनीयता सोचने को विवश कर रही हैं।
कल (भूत) तो हमें किस्से कहानियों किताबों से ज्ञात हो जाता है जो शायद कहीं न कहीं से लगभग सभी जानते होंगे।
और आज (वर्तमान) तो समझा जा सकता है कैसे समाप्त हो रहा पुरानी धरोहरों का अस्तित्व हम लोग रख रखाव नहीं कर पाए सरकार के आगे भी इन्हें सुरक्षित और संरक्षित करने के लिऐ वो पहल नहीं की जो करनी चाहिए वहीं बढ़ती आबादी से सिकुड़ती जमीन के कारण उन पर अवैध कब्जे भी पतन का कारण बने ।अगर अपने उद्योग
धंधों के पतन के कारणों पर विचार करें तो कई हो सकते हैं उनमें सबसे बड़ा यदि कोई कारण है वो हम स्वयं हमने अपने उत्पाद चाहे कागज हो कपड़ा हो या कालीन उस पर कम्पटीशन किया वो भी रेटों पर सामने वाले ने वहीं चीज दस रुपए की दी तो हमने नौ रुपए की जिससे उस माल की क्वालटी डाउन हुई और ऐसा करते करते हम फेल हो गए वहीं यदि हम क्वाल्टी पर कंपटीशन करते भले ही थोड़ा मंहगा होता तो शायद आज ये स्थिति सामने न आती।अब बात करते हैं कल की कल यानी (भविष्य) कैसा होगा ये में क्या कोई फरिश्ता भी नहीं बता सकता हां अनुमान अवश्य लगाया जा सकता है और अनुमान पर सभी का अपना अपना अलग ही अंदाज होता है उस पर कोई गारंटी नहीं होती। इसलिए कालपी का कल(भविष्य) कैसा होगा में नहीं लिख सकता आप सभी को इसका कल(भविष्य) कैसा होगा उसे बनाने और सोचने का अधिकार है।
बस इसी के साथ अब मैं अपनी कलम को विराम देता हूँ
जय हिन्द जय कालपी धाम
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