कृत्रिम मेधा और भारतीय ज्ञान परंपरा पर हुआ गहन मंथन, विशेषज्ञ बोले—नई शिक्षा नीति से खुले नवाचार के नए द्वार न्यूज़ ऑफ इंडिया (एजेंसी) बारा...
कृत्रिम मेधा और भारतीय ज्ञान परंपरा पर हुआ गहन मंथन, विशेषज्ञ बोले—नई शिक्षा नीति से खुले नवाचार के नए द्वार
न्यूज़ ऑफ इंडिया (एजेंसी)
बाराबंकी: 29 नवंबर 2025
बाराबंकी के जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल पीजी कॉलेज (जनेस्मा) में शनिवार को हिंदुस्तानी एकेडमी प्रयागराज एवं प्रज्ञा प्रवाह के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य आयोजन हुआ। ज्ञान पुनर्जागरण एवं नवाचार विषय पर केंद्रित यह संगोष्ठी उच्च शिक्षा में स्वदेशी दृष्टिकोण को नई दिशा देने वाली साबित हुई। कार्यक्रम की संयोजिका अर्थशास्त्र विभाग की सहायक आचार्य डॉ. अर्चना सिंह रहीं।
कृत्रिम मेधा : उच्च शिक्षा में नया अवसर
उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार डॉ. अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि एआई उच्च शिक्षा का सबसे बड़ा नवाचार बनने जा रहा है। इसके उपयोग को भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़कर देखने की जरूरत है, ताकि इसका दुरुपयोग रोका जा सके। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. योगेंद्र प्रताप सिंह की पुस्तक ‘कृत्रिम मेधा’ का उल्लेख करते हुए इसे भारतीय ज्ञान के विकास का महत्वपूर्ण प्रयोग बताया।
पाठ्यक्रम प्लेटो–अरस्तू से नहीं, बल्कि भारतीय तत्व–चिंतन से जुड़ेगा : कुलपति डॉ ब्रिजेन्द्र सिंह
विशिष्ट अतिथि राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. ब्रिजेन्द्र सिंह ने आपने अभिभाषण में कृत्रिम मेधा का उच्च शिक्षा में अनुप्रयोग और उसका प्रभाव पर अपनी बात रखी। साथ ही उच्च शिक्षा में स्वदेशी ज्ञान में नवाचार पर विस्तार से चर्चा की। इसके साथ ही उन्होंने उन्होंने स्पष्ट किया कि अब पाठ्यक्रम प्लेटो–अरस्तू से नहीं, बल्कि भारतीय तत्व–चिंतन से जुड़ेगा।
स्वदेशी शिक्षा पद्धति को मिला नया बल
राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि भारत की संस्कृति में विज्ञान स्वतः निहित है। गुलामी के कारण सनातन शिक्षा पद्धति को क्षति पहुँची, किंतु नई शिक्षा नीति स्वदेशी नवाचार को पुनर्जीवित करने का अवसर दे रही है।
महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन से नवाचार की प्रेरणा लेनी चाहिए : प्रोफ0 डॉ सीताराम
महाविद्यालय के प्राचार्य एवं संरक्षक प्रो. डॉ सीताराम सिंह ने कहा कि महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन से नवाचार की प्रेरणा लेनी चाहिए। नई शिक्षा नीति इसी दिशा में बड़ा कदम है। ओसाका विश्वविद्यालय जापान के डॉ. वेद प्रकाश सिंह ने कहा कि गुरुकुल पद्धति देने वाले देश में औपनिवेशिक मानसिकता के कारण शिक्षा में मूल्यहीनता आई। अब समय है कि धर्म, विज्ञान, परंपरा और आधुनिकता को टुकड़ों में बाँधने के बजाय समग्र रूप से समझा जाए।
तकनीकी सत्र, सांस्कृतिक रंग और शोध पत्रों की प्रस्तुति
हिंदी विभाग की प्रो. डॉ. रीना सिंह तथा प्रो. विजय कुमार वर्मा ने क्रमशः उद्घाटन एवं तकनीकी सत्र का संचालन किया। ऑनलाइन सत्र के अध्यक्ष प्रो. विनोद कुमार श्रीवास्तव रहे, जबकि संचालन डॉ. दरखशां शहनाज ने किया। शोधार्थियों ने अपने–अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। अपराह्न 4 बजे से आयोजित काव्य संध्या ने कार्यक्रम को नई ऊँचाई दी, जिसमें डॉ. अम्बरीष अम्बर, प्रदीप सारंग, प्रदीप महाजन, वागीश बाजपेयी सहित कई विद्वान कवियों ने अपनी प्रस्तुतियां दी। कार्यक्रम के अंत में तकनीकी धन्यवाद ज्ञापन प्रो. कृष्णकांत चंद्रा तथा ऑनलाइन सत्र का धन्यवाद डॉ. मानव कुमार सिंह ने किया। संगोष्ठी ने शिक्षा जगत को ज्ञान के पुनर्जागरण और स्वदेशी नवाचार की दिशा में प्रेरक संदेश दिया।


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