सुशील सिंह *राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं आरटीआई जागरूकता संगठन उत्तर प्रदेश ने राष्ट्रीय हिंदी रत्न समागम 2020 आज: ज्ञान प्रकाश तिवा...
सुशील सिंह
*राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं आरटीआई जागरूकता संगठन उत्तर प्रदेश ने राष्ट्रीय हिंदी रत्न समागम 2020 आज: ज्ञान प्रकाश तिवारी*
राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं आरटीआई जागरूकता संगठन परिवार द्वारा आयोजित कार्यक्रम की चर्चा पर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदी प्रेमी,साहित्कार रमेश चंद चौरसिया,राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं आरटीआई जागरूकता संगठन के राष्ट्रीय प्रभारी ज्ञान प्रकाश तिवारी को सीधे शब्दों में कुछ बात कही , इसका कोई एक दिन कैसे हो सकता है। क्या इस दिन के पहले हिंदी का अस्तित्व नहीं था। ... हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी।
हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है। देश की राष्ट्र भाषा हिंदी के प्रति इस दिन सम्मान भाव प्रकट करने के ध्येय से कई आयोजन किए जाते हैं। सरकारी व निजी कार्यालयों में इस दिन सारे संवाद हिंदी में किए जाने की कोशिशों के बीच, अभिव्यक्ति के तमाम मंचों पर गद्य एवं पद्य में हिंदी की बातें की जाती हैं। लेकिन आपके मन में सवाल उठता होगा कि हिंदी तो एक भाषा है। इसका कोई एक दिन कैसे हो सकता है। क्या इस दिन के पहले हिंदी का अस्तित्व नहीं था। ऐसे ही सारे सवालों एवं जिज्ञासाओं का हम यहां समाधान करने जा रहे हैं। जानिये हिंदी दिवस का अर्थ, इसका इतिहास, महत्व एवं इस दिन होने वाले आयोजनों के बारे में सब कुछ, राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं आरटीआई जागरूकता संगठन राष्ट्रीय हिंदी रत्न समागम में हिंदी उत्थान पर विशेष चर्चा में शामिल होंगे, रमेश चंद चौरसिया जी व 101 हिंदी शिक्षाविद व हिंदी प्रेमी भारतीय
हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। एक तथ्य यह भी है कि 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी के पुरोधा व्यौहार राजेन्द्र सिंह का 50-वां जन्मदिन था, जिन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए बहुत लंबा संघर्ष किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने अथक प्रयास किए। राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं आरटीआई जागरूकता संगठन परिवार देश ही नही विदेशों में भी हिंदी के विकास पर महत्वपूर्ण योगदान देने जा रहा है ,भारत के बाद नाइजीरिया, अमेरिका, हमारा संगठन परिवार ने हिंदी,संस्कृति व भाषा विज्ञान की नींव रखेगा। और अपने हिंदुस्तान की में हिंदी की पहचान बनाकर पूरे विश्व में एक नई अलख जगायेंगे हमारे संगठन के पदाधिकारी
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