अरुण कुमार,बेगसराय (बिहार) बेगसराय,बिहार ही नहीं पूरे भारतवर्ष में अपनी पहचान बनाने वाले तेजस्वी,ओजस्वी कवि रामधारी सिंह की 110वीं पुण्य...
अरुण कुमार,बेगसराय (बिहार)
बेगसराय,बिहार ही नहीं पूरे भारतवर्ष में अपनी पहचान बनाने वाले तेजस्वी,ओजस्वी कवि रामधारी सिंह की 110वीं पुण्यतिथि सूबे के विभिन्न संस्थाओं ने भावभीनी श्रद्धा सुमन और पुष्प माल्यार्पण कर मनाया।जगह जगह पर स्थापित शिला और कांस्य प्रतिमाओं पर फुल माला पहनाकर उन्हें याद किया गया।इस आयोजन में जिला प्रशासन आरक्षी अधीक्षक,जिलाधिकारी महोदय के साथ साथ गणमान्य व्यक्तियों ने भी माल्यार्पण कर उन्हें याद किया।
दिनकर का जन्म 23 सितम्बर 1908 सिमरिया ग्राम बेगूसराय,बिहार में हुआ।ये आधुनिक युग के वीर रस के रुप में स्थापित कवि थे।दिनकरजी इतिहास,दर्शन शास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की।रामधारी सिंह दिनकरजी का गहन अध्ययन अपने हिन्दी भाषा के अलावे संस्कृत, बांग्ला,अंग्रेजी और उर्दू इन सभी भाषाओं पर इनकी अच्छी पकड़ थी।
इनकी प्रमुख कृतियों में प्रणभंग 1929,रेणुका 1935,हुँकार 1938,कुरुक्षेत्र 1946,बापू 1947,रश्मिरथी 1952,उर्वशी 1961,परशुराम की प्रतीक्षा 1963,हारे का हरिनाम आदि रही,जिसमें मुख्य रुप से चर्चित कवि के रूप में ख्याति मिलना प्रारंभिक दौड़ का श्रीगणेश सन 1929 में प्रणभंग से हुआ और अपने जीवन के दौड़ का आखिरी कविता इनकी हारे का हरिनाम रही,हारे का हरिनाम सन 1970 में प्रकाशित हुई और 24 अप्रैल 1974 को मद्रास के तमिलनाडु में इनका देहावसान हुआ।
इन्हें साहित्य अकादमी द्वारा पद्मभूषण सम्मान सन 1958 में और सन 1972 में ज्ञानपीठ अवार्ड से नवाजा गया।
उर्वशी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला तो कुरुक्षेत्र को भी 100 सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 74वां स्थान प्राप्त हुआ।
कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत है:-
कुरुक्षेत्र से:-
पत्थर सी हो मांसपेशियाँ,लौहदण्ड भुजबल अभय
नस नस में हो लहार आग सी,तभी जवानी पाती जय।
रश्मिरथी से:-
रे रोक युधिष्ठिर को न यहाँ,जाने दे उनको स्वर्ग धीर
पर फिरा हमें गाण्डीव गदा,लौटा दी अर्जुन भीम वीर।
हटो व्योम के मेघ पंथ से,स्वर्ग लूटने हम जाते हैं
दूध दूध ओ वत्स तुम्हारा,दूध खोजने हम जाते हैं।
सच पूछो तो सर में ही,बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि वचन संपूज्य उसीका,जिसमें शक्ति विजय की।
सहनशीलता,क्षमा,दया को तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग हो।
दो न्याय अगर तो आधा दो,पर इसमे भी यदि बधा हो
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,रक्खो अपनी धरती तमाम।
जब नाश मनुज पर छाता है
पहले विवेक मर जाता है।
हिमालय से-
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दन्तहीन,विषहीन,विनित सरल हो।
मरणोंपरान्त सम्मान:-
30 सितम्बर 1987 को रामधारी सिंह "दिनकर" की 13वीं पुण्यतिथि पे तत्कालीन राष्ट्रपति जैल सिंह ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।1999 में भारत सरकार ने उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया।
रामधारी सिंह दिनकरजी अपने जीवन काल में सामाजिक,आर्थिक समानता और शोषण के खिलाफ कविताओं की रचना करते रहे,वे प्रगतिवादी और मानववादी कवि थे।ऐसे कवि को शत शत नमन।
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