डा. नरेंद्र दीक्षित ज्योतिषाचार्य बांदा आज के परिवेश में वर वधू के कुंडली मिलान का ज्योतिषीय विश्लेषण सर्वप्रथम गणेश जी को प्रण...
डा. नरेंद्र दीक्षित ज्योतिषाचार्य बांदा
आज के परिवेश में वर वधू के कुंडली मिलान का ज्योतिषीय विश्लेषण सर्वप्रथम गणेश जी को प्रणाम परम पूज्य गुरुदेव को प्रणाम मित्रों हिंदू धर्म में विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार होता है विवाह की सफलता असफलता वर वधु के जीवन को सुखी और दुखी करती है ऋषि-मुनियों ने इस समस्या के समाधान के लिए ज्योतिष पद्धति का विकास किया जिसमें वर वधु के विभिन्न गुणों को मिलाया जाता था लेकिन आज के परिवेश में गुण मिलान केवल अष्टकूट मिलान तक सीमित रह गया है। शास्त्रोंक्त वर वधू मिलान प्रचलन से गायब हो गया है। परमपूज्य गुरुदेव के आशिर्वाद से विभिन्न ज्योतिष ग्रंथों के अध्ययन विष्णु भाव नाड़ी के मान्य सिद्धांतो के अनुसार यह शोध पत्र आपके समक्ष प्रस्तुत है । आज वर वधू मिलान एक धार्मिक कृत्य बन गया है। परन्तु कुंडली मिलान करते समय केवल ज्योतिषाचार्य नक्षत्र मिलान करते हैं जिससे बहुत त्रुटियां रह जाती है कुंडली मिलान निष्फल निर्थक रह जाता है कुछ दैवज्ञ मांगलिक मिलान करते हैं इसके अतिरिक्त कोई अन्य तत्व नहीं देख पाते है।जब ज्यादा परेशानी हुई तो कह देते हैं मन नहीं मिला तो क्या करें। ऋषियो ने सबसे पहले यह कहा वर की कुंडली से वधू का नाम निकाले वधू की कुंडली से वर का नाम निकाले तो समस्या हल होगयी यदि इतना ज्ञान नहीं है तो वर की कुंडली से वधू की लग्न निकाले वधू की कुंडली से वर की लग्न निकाले या सूर्य चंद्रमा की लगन निकाले इससे कुंडली मिलान में बहुत सहायता मिलेगी अन्य मेलापक के बिंदु केवल अनुमान मात्र हैं परंतु नाम निकालने का साहित्य लुप्त हो गया है जिनके पास यह साहित्य था उन्होंने गुप्त रखा जिसके कारण नाम निकालने का साहित्य लगभग समाप्त हो गया हमारे गुरुदेव की खोज से इसमें केवल तीन परसेंट ही सफलता मिली है एक दृढ़ मान्यता है पति और पत्नी के रिश्ते को ईश्वर ने पहले से ही निर्धारित कर रखा है किसकी शादी किसके साथ होगी तभी तो ताड़ पत्रों वाली कुंडलियों में माता-पिता पति पत्नी का नाम पहले से ही लिखा होता है जैसे जातक का क्या नाम होगा जातक के माता-पिता का क्या नाम होगा पत्नी का क्या नाम होगा किस घर में पैदा होगा आसपास का वातावरण क्या होगा यह पूर्व से ही लिखा रहता है कितने गर्व का विषय है यह विद्या हमारे ऋषि-मुनियों को को ज्ञात थी। दुर्भाग्यवश जिन विद्वानों को इसका ज्ञान था आजीविका के डर से निजी लोग के कारण किसी से साझा नहीं किया इस कारण आज केवल मेलापक ही रह गया अब यहां प्रश्न उठता है जब पति पत्नी के रिश्ते पहले से ही निर्धारित होते हैं तो मेलापक की क्या आवश्यकता थी हमारी दृष्टि इसमें कुछ भी नहीं है लेकिन भारतवर्ष में बहुत से लोग मेलापक को बहुत महत्व देते हैं यदि कोई दैवज्ञ जन्मकुंडली से वर वधु का नाम जन्म स्थान दिशा व्यवसाय निकाल सके तो कुंडली मिलान सफल हो जाएगा वर वधु को ढूंढने के प्रयासों में काफी कमी आएगी लोगों को मेहनत भी कम करनी पड़ेगी इस दिशा में जितने भी शोध हुए हैं उनके परिणाम 5% हैं हमारी दृष्टि से वर्तमान मेलापक पद्धति अपूर्ण है यदि किसी व्यक्ति के पास इस संदर्भ में पूर्व ऋषि मुनियों वाला कुछ भी ज्ञान हो तो जनकल्याण के लिए साझा करें। इसके प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं वर वधु के चयन करते समय जब माता-पिता परिवारी जन निकलते हैं उनका पहला विचार यह होता है कि वर या वधू अपने देश अपने राज्य अपने क्षेत्र का होना चाहिए माता-पिता चाहते हैं वर या वधू अपने ही धर्म के होने चाहिए हिंदू चाहता है उसकी शादी हिंदू से हो मुस्लिम चाहता है उसकी शादी मुस्लिम से हो देश काल परिस्थिति के अनुसार देखना चाहिए अब माता-पिता चाहते हैं वर वधु अपनी ही जाति समानार्थी गोत्र के होने चाहिए इसके अलावा शिक्षा स्वास्थ्य अच्छी बुरी आदतें रहन सहन खानपान धन समृद्धि आर्थिक स्थिति एक दूसरे का स्तर भी देखा जाती है जब यह सब मिल जाते हैं तब माता-पिता एक ज्योतिषी के पास आते हैं अब आगे का हिस्सा ज्योतिषी को निश्चित करना पड़ता है ज्योतिषी 2 तथ्यों के आधार पर अपना विश्लेषण देते हैं १ नक्षत्र मैत्री २ ग्रह मैत्री मांगलिक विचार को देखते हुए ज्योतिषी अपना मत दे देते हैं यह नहीं देखते शादी करने के बाद 4 साल में मृत्यु योग तो नहीं है उस पर विचार नहीं किया जाता दोनों का मन कितना मिल रहा है इस पर कोई विचार नहीं किया जाता दोनों की ग्रह युति मिलेगी तो क्या परिणाम होंगे इस पर विचार नहीं किया जाता जिससे आम लोगों की धारणा ज्योतिष के प्रति कम होती जा रही है ज्योतिषी को चाहिए ग्रह मैत्री योग युति दोनों कुंडलियों में मिलान करना चाहिए अगर आवश्यक समझे तो गुण मेलापक भी देखना चाहिए वर्तमान में कोई भी कंप्यूटर से कुंडली मिलान कर देता है वह यह नहीं देखता 4 साल में दो में से एक की मृत्यु हो सकती है एक दूसरे से तलाक हो सकता है संतान नहीं हो सकती दो में से एक नपुंसक हो सकता है दोनों में आपस में विचार एक ना हो एक नहीं हो सकते ऐसी स्थितियों में आप सुखद दांपत्य जीवन की परिकल्पना नहीं कर सकते हैं हमारे प्राचीन ऋषि ऋषि मुनियों की खोज का परिणाम ही ज्योतिष है उनका उदात्त चिंतन गहन अनुसंधान के परिणाम से निकली यह विद्या बहुत से तथ्यों को उजागर करती है अब हम ऋषि-मुनियों के अनुसार कुछ तथ्यों पर चिंतन करते हैं कुंडली मिलाते समय सबसे पहले आयु देखनी चाहिए कानूनन वर्ग की आयु 21 वर्ष वधू की आयु 18 वर्ष होनी चाहिए अनुभव शोध के आधार पर ऋषि यों के अनुसार वर वधु में अधिकतम 7 वर्ष का अंतर होना चाहिए अर्थात वर की आयु से कन्या की आयु 7 वर्ष तक कम हो सकती है विशेष परिस्थितियों में वधू की आयु वर से 3 वर्ष तक बड़ी हो सकती है विद्वानों का मत है इस निर्णय में आज की देश काल परिस्थिति को भी सम्मिलित किया गया है किसी भी शास्त्र का मत आज की देश काल परिस्थिति के आधार पर घटाया बढ़ाया जाता है जब आप अमेरिका में पैदा हुए हैं आपके पास गाड़ी बंगला धन 4 सहेलियां पहले से ही होंगे यही ग्रह योग कुंडली एक भारतीय की होगी उसके रहन सहन वित्तीय स्थिति में काफी अंतर होगा २ जन्मांग का मिलान करते समय उम्र का दीर्घ जीवन का विशेष ध्यान रखा जाता है इस बात को ऐसे समझ गए एक आदमी का जीवन चक्र 70 साल होता है तो उसकी स्त्री का भी जीवन चक्र 68 से 72 साल के बीच हो तभी मेलापक सत्य सिद्ध होगा यदि ऐसा नहीं हुआ दोनों में से कोई जल्दी गुजर गया या कहीं 5 से 7 सालों के बीच वर वधु में से कोई गुजर गया तो उसका परिवार बिगड़ जाएगा लोगों लोगों के द्वारा इस बिंदु पर कभी विचार नहीं किया जाता कुंडली मिलाते समय यह सबसे महत्वपूर्ण बिंदु होता है मेरा मत है ज्योतिष आचार्यों को इस पर ध्यान देना चाहिए अब हम कुंडली मिलाने के तीसरे बिंदु पर आते हैं ३ संतान योग ज्योतिषाचार्य को चाहिए देखे की संतान होगी कि नहीं होगी कौन सा योग है कि नहीं है दोनों की कुंडली देखने के बाद लोगों के द्वारा अनुमान लगाया जा सकता है ज्योतिष आचार्यों को नपुंसक योगो पर भी विचार करना चाहिए देखने में आता है 20 से 30 परसेंट लोगों को नपुंसकता के कारण ही संतान नहीं होती है या फिर होती है तो एक ही लिंग की संतान होती है जैसे आप लोग देखते हैं किसी के पुत्री पुत्री होती है पुत्र नहीं होता या पुत्र पुत्र होता है पुत्री नहीं होती इन सब पर भी विचार करना चाहिए इसके बाद वर-वधू की गरीबी और अमीरी भी देखना चाहिए ऐसा ना हो एक के आने के बाद दूसरा गरीब हो जाए अब अगला बिंदु आता है चरित्र सम्मान सामाजिक स्थिति देखनी चाहिये ४ ज्योतिषाचार्य को अंगहीनता योग भी देखनी चाहिए ऐसा ना हो कि शादी के बाद एक के आने के बाद दूसरा अंग हीन हो जाए दूसरा जीवन भर उसे संभालता रह जाए दांपत्य जीवन खराब हो जाएगा ५ कई कारणों से वर वधु एक दूसरे से दूर रहते हैं इसका भी विचार करना आवश्यक है जेल आदि योगो का भी विचार करना चाहिए ६ दैवज्ञको चाहिए वह बहु विवाह कई लड़कियों के साथ संबंध कई पत्नियों के योग कुंडली में नहीं होने चाहिए यह ज्यादातर विदेशों में या मुस्लिम समाज में ज्यादा मिलता है साथ में सन्यास योग को भी देखना चाहिए कहीं ऐसा ना हो जाए कि विवाह के बाद दूसरा सन्यासी बन जाए तो लड़की का जीवन खराब हो जाएगा ज्योतिष में मंगल और शुक्र की स्थिति को देखना चाहिए मंगल और शुक्र जितने पीड़ित होंगे पति-पत्नी में उतनी ही लड़ाई होगी उतना ही विच्छेद होगा भाव युति राशि के अनुसार दैहिक दैविक भौतिक प्रभाव जीवन में परिलक्षित होंगे प्रचलित मांगलिक दोष से भी यह खराब होता है आप स्वयं मनन चिंतन और अनुभव की कसौटी पर देखें तो तथ्य सामने आएंगे मंगल किसी भी भाव में बैठा हो वह किसी को मृत्यु नहीं दे सकता है पहले चौथे सातवें 8वे 12 वे भाव में बैठा मंगल किसी को मृत्यु नहीं दे सकता इसलिए जो यह धारणा बनी है कि मंगली होने पर पति पत्नी में से किसी एक की मृत्यु हो जाती है यह नितांत गलत है वैज्ञानिक कारण नहीं मिला है। दूसरी बात यह है मंगली की शादी मंगली के साथ होने पर दोनों दीर्घ जीवी और सुखी रहते हैं यह भी बात गलत है यदि वर की कुंडली में विधुर योग है वह मंगली है तो क्या मंगली लड़की से शादी करने पर उसकी पत्नी नहीं मरेगी उसकी पत्नी मरने का योग खत्म हो जाएगा विधाता की लेखनी झूठ हो जाएगी ऐसा नहीं है ईश्वर जीवन की मुख्य मुख्य घटनाएं पहले से ही लिख देते हैं बाकी के कर्म के आधीन होती हैं इसलिए मांगलिक दोष का बहुत बड़ा प्रमाणिक कारण प्रयोग के अनुभव के धरातल पर नहीं मिलता है इसके अतिरिक्त अकाल मृत्यु आकस्मिक युद्ध दंगे आदमी विकलांग होने के योग भी देखने चाहिए इसलिए सूत्रों के नियमों का अनुसरण करते हुए अष्टकूट मिलान करें शुभ योग भी देखें सभी शुभ योग किसी भी पत्रिका में नहीं मिलते हैं अधिक से अधिक लोगों को जीवन की मुख्य मुख्य घटनाओं को देखते हुए निर्णय दें कुछ ज्योतिषी अष्टकूट मिलान मांगलिक दोष पंचम नवम नारी भकूट आदि को देखकर कुंडली मिलान का निर्णय दे देते हैं वह बहुत ही निंदनीय और भ्रामक है जब तक आप युति योग आदि ना मिलाएं तब तक आप अपने यजमान का सही कल्याण नहीं कर पायेंगे। वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर शुक्र मंगल का पीड़ित होना ही दांपत्य में कलह वा वह मृत्यु देता है अब प्रश्न उठता है कहां-कहां पर मिलान की आवश्यकता नहीं है प्रेम विवाह में स्वयंबर दान में मिली हुई कन्या खरीदी अपहरण युद्ध में जीती हुई कन्याओं में मिलान की आवश्यकता नहीं है यह ऋषि मुनियों का मत है यदि वर 45 साल का वधू 40 साल की हो दूसरे या तीसरे विवाह में कुंडली मिलान की आवश्यकता नहीं होती है वर वधु के आयु में कितना अंतर हो इसका कोई स्पष्ट शास्त्र सम्मत प्रमाण नहीं मिला है परंतु हमारे गुरुदेव के ज्योतिषी अनुभव के आधार पर लड़का लड़की में 7 साल का अंतर हो सकता है वधू अधिकतम 3 साल तक वर से बड़ी रह सकती है एक अनुभव में पाया बहुत से ज्योतिषी तुक्का लगाते हैं उनकी गणना का ना तो वैज्ञानिक आधार होता ना शास्त्रीय चिंतन होता यदि आप सत्य को जानते हैं तो सत्य सलाह दें अन्यथा जगदंबा रुष्ट हो जाती है आप पाप के भागी बनेंगे।
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