दुर्गा पूजा के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में होता है। इस चक्र में अवस्थि...
दुर्गा पूजा के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम की वृद्धि होती है। सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है। प्रोफेसनल जिंदगी में विश्वास और दृढ़ता आती है और अपने काम को ज्यादा अच्छे तरीके से करने की हिम्मत बनती है और हमेशा नए नए विचार आते रहते है जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्त्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।
इस चक्र के जागरण पर व्यक्ति में चमत्कारिक शक्तियों का उदय होता है परन्तु थोड़ी सी भी असावधानी हुई तो चमत्कार और अहंकार दोनों में फँसकर बर्बाद होते देर नहीं लगती ,क्योंकि अहंकार वश यदि साधना बन्द हो गयी तो आगे का मार्ग तो रुक ही जाएगा, वर्तमान सिद्धि भी समाप्त होते देर नहीं लगती है , इसलिए सिद्धों को चाहिए कि सिद्धियाँ चाहे जितनी भी उच्च क्यों न हों, उसके चक्कर में नहीं फँसना चाहिए लक्ष्य प्राप्ति तक निरन्तर अपनी साधना पद्धति में पूर्ण रूप से श्रद्धा और त्याग भाव के साथ लगे रहना चाहिए ।
स्वाधिष्ठान चक्र की जाग्रति स्पष्टता और व्यक्तित्व में विकास लाती है। किन्तु ऐसा हो, इससे पहले हमें अपनी चेतना को नकारात्मक गुणों से शुद्ध कर लेना चाहिए। जिसके लिए साधक को निरंतर आसन और प्राणायाम कर के अपने शरीर को मजबूत और अपनी इन्द्रियों को अपने वश में कर लेना चाहिए । ( आसन और प्राणायाम के बारे में अधिक जानकारी के लिए यूट्यूब पर योग गुरु पंकज शर्मा या उनके चैनल का नाम शरणम (sharnam ) सर्च कर सकते है )
स्वाधिष्ठान चक्र का प्रतीकात्मक चित्र 6 पंखुडिय़ों वाला एक कमल है जिसकी 6 पंखुड़ियां क्रमश क्रोध, घृणा, वैमनस्य, क्रूरता, अभिलाषा और गर्व का प्रतीक है और ये हमारे नकारात्मक गुणों के प्रतीक है जिन पर हमे विजय प्राप्त करनी है इसके अलावा अन्य प्रमुख अवगुण जो हमारे विकास को रोकते हैं, वे हैं आलस्य, भय, संदेह, बदला, ईर्ष्या और लोभ।
स्वाधिष्ठान चक्र अगर जागृत ना हो तो व्यक्ति की रचनात्मकता बाधित होती है। वो नीरसता से काम करता है। नए विचारों और रचनात्मकता दोनों ही दिमाग में प्रवेश नहीं पा सकते ।
स्वाधिष्ठान चक्र नाभि से थोड़ा नीचे होता है। यह आपके प्रजनन अंगों और आपकी कल्पना को नियंत्रित करता है। यह चक्र आपकी रचनात्मक प्रक्रिया को अंतरंग रूप से जोड़ता है। इसका मंत्र वं है और इसका रंग नारंगी है। स्वाधिष्ठान चक्र का प्रतीक पशु मगरमच्छ है। यह सुस्ती, भावहीनता और खतरे का प्रतीक है जो इस चक्र में छिपे हैं। स्वाधिष्ठान चक्र का तत्त्व है जल, यह भी छुपे हुए खतरे का प्रतीक है। जल कोमल और लचीला है, किन्तु यह जब नियंत्रण से बाहर हो जाता है तो भयंकर प्रलयकारी हो जाता है।
इस चक्र का जागरण मूलाधार चक्र के जागरण के बाद ही होता है किन्तु योग और तंत्र में इसे सीधे भी जाग्रत करने के विधान हैं |सीधे जाग्रत करने पर कुंडलिनी ,मूलाधार को पूर्ण जाग्रत किये बिना यहाँ तीव्र क्रियाशील होती है जिससे उसका वास्तविक उर्ध्वगमन न होकर चक्र विशेष की क्रियाशीलता तक सक्रियता होती है |इस स्थिति में लगातार रहने पर पूर्ण कुंडलिनी जागरण सम्भव है किन्तु अधिकतर साधक यहाँ प्राप्त होने वाली सिद्धियों के मायाजाल में ही फंसे रह जाते हैं और भ्रम पाल लेते हैं की वह सबकुछ पा चुके |योग द्वारा इस चक्र को ध्यान से जाग्रत किया जा सकता है ,जबकि तंत्र द्वारा इसका जागरण दुर्गा ,बगलामुखी आदि की साधना से हो सकता है |कुंडलिनी साधना और जागरण हो अथवा चक्र जागरण दोनों ही तकनिकी साधनाएं है जो बिना गुरु के नहीं हो सकती |इनमे कदम कदम पर तकनीकियों का समावेश होता है जिनमे ऊर्जा उत्पन्न करने और संभालने की तकनीकियाँ बताई जाती हैं जिससे व्यक्ति की साधना सफल हो और वह पतित भी न हो |अक्सर बिना गुरु के चक्र साधनाएं करने वाले असफल भी होते हैं और विभिन्न समस्याओं से भी ग्रस्त हो जाते हैं चक्र जागरण की अवस्था में दुर्गा की शक्तियों का उदय होता है जिससे चंचलता ,उग्रता ,अति साहस ,स्वभाव की तीव्रता ,जल्दबाजी उत्पन्न होती है जो शांत नहीं बैठने देती और व्यक्ति अभिमानी हो गलतियाँ कर सकता है |इन पर नियंत्रण के बाद ही वह इंद्र के समान इन्द्रियों पर विजय पाता है और सर्वसुख सम्पन्न होता है |
मनुष्य नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान करता है और इनके मंत्र का जाप करता है तो बहुत ही जल्द माँ की कृपा होती है और स्वाधिष्ठान चक्र जाग्रत हो जाता है इसके लिए सबसे पहले सुबह जल्दी स्नान आदि कर के साफ कपड़े पहन कर नारंगी रंग के आसन पर बैठे और माँ ब्रह्मचारिणी का स्मरण करते हुए मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम: की 11 माला का जाप करें ।
इस चक्र को जागृत करने के लिए आपको शीर्षासन, मंडूकासन, कपालभाति 10 से 15 मिनट के लिए नियमित करना होगा। साथ ही जीवन में अनुशासन लाना होगा और मौज-मस्ती ,भोग विलास और मनोरंजन को नियंत्रित रखना होगा।
धन्यवाद
योग गुरु पंकज शर्मा
विशेष - अगले अंक में जाने अपने मणिपुर चक्र को नवरात्रि में कैसे जाग्रत करें ।
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