26 सितंबर 2025 भारत। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। यह वह पेशा है जो समाज को सच्चाई का आईना दिखाता है, सत्ता ...
26 सितंबर 2025
भारत। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। यह वह पेशा है जो समाज को सच्चाई का आईना दिखाता है, सत्ता को जवाबदेह बनाता है और जनता की आवाज को बुलंद करता है। लेकिन जब पत्रकारिता में चाटुकारिता का रंग चढ़ जाता है, तो यह शैतान का काम बन जाता है—ना बाबा ना! चाटुकारिता, यानी सत्ता, धन या प्रभावशाली लोगों के सामने नतमस्तक हो जाना, पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों—निष्पक्षता, सत्य और स्वतंत्रता—के साथ विश्वासघात है।चाटुकारिता की पत्रकारिता में कई रूपों में प्रकट होती है। कभी यह सत्ताधारी नेताओं की अंधी प्रशंसा के रूप में दिखती है, तो कभी कॉरपोरेट हितों को बढ़ावा देने के लिए खबरों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने में। कुछ पत्रकार सत्ता के गलियारों में अपनी पहुंच बनाए रखने के लिए सच को दबा देते हैं, जबकि कुछ आर्थिक लाभ या करियर की सुरक्षा के लिए अपने कलम को बेच देते हैं। यह चाटुकारिता न केवल पत्रकारिता की विश्वसनीयता को ठेस पहुंचाती है, बल्कि समाज के सामने गलत तस्वीर भी पेश करती है।जब कोई पत्रकार सरकार की नीतियों की आलोचना करने के बजाय उनकी तारीफ में लेख लिखता है, बिना तथ्यों की जांच किए, तो वह पत्रकारिता नहीं, बल्कि प्रचार करता है। इसी तरह, जब मीडिया हाउस किसी बड़े कॉरपोरेट समूह के दबाव में खबरों को दबा देता है या पक्षपातपूर्ण ढंग से पेश करता है, तो वह जनता के साथ धोखा करता है। जब पत्रकार चाटुकारिता में लिप्त होते हैं, तो जनता का मीडिया पर भरोसा टूटता है। लोग खबरों को संदेह की नजर से देखने लगते हैं, जिससे पत्रकारिता की साख कमजोर होती है। पत्रकारिता का काम सत्ता को चुनौती देना है, न कि उसका साथ देना। चाटुकारिता सत्ता को निरंकुश बनाती है, क्योंकि पत्रकार सवाल उठाने के बजाय उसकी हां में हां मिलाते है।पक्षपातपूर्ण पत्रकारिता समाज में ध्रुवीकरण को बढ़ावा देती है। यह गलत सूचनाओं को फैलाती है, जिससे लोगों के बीच तनाव और अविश्वास बढ़ता है।
पत्रकारों की स्वतंत्रता पर अंकुश: चाटुकारिता करने वाले पत्रकार न केवल अपनी स्वतंत्रता खो देते हैं, बल्कि उन पत्रकारों पर भी दबाव बनता है जो निष्पक्ष रहना चाहते हैं।पत्रकारों को सत्य को प्राथमिकता देनी होगी, चाहे वह कितना भी असुविधाजनक हो। तथ्यों की गहन जांच और संतुलित रिपोर्टिंग इस दिशा में पहला कदम है। पत्रकारों को नैतिकता और पेशेवर मूल्यों का प्रशिक्षण देना जरूरी है, ताकि वे दबाव में न झुकें।जनता को भी चाहिए कि वह खबरों को आलोचनात्मक दृष्टि से देखे और चाटुकारिता करने वाले मीडिया को जवाबदेह बनाए। पत्रकारिता में चाटुकारिता वाकई शैतान का काम है, जो न केवल इस पेशे की गरिमा को ठेस पहुंचाता है, बल्कि समाज और लोकतंत्र को भी कमजोर करता है। पत्रकारिता का असली धर्म है—सच बोलना, सवाल उठाना और कमजोर की आवाज बनना। जब तक पत्रकार इस धर्म को नहीं निभाएंगे, तब तक चाटुकारिता का यह दानव पत्रकारिता को खोखला करता रहेगा। इसलिए, ना बाबा ना—चाटुकारिता को पत्रकारिता से दूर रखें, ताकि यह पेशा अपनी साख और शक्ति को पुन प्राप्त कर सके।
- इंद्र यादव - स्वतंत्र लेखक,भदोही ( यूपी )
indrayadavrti@gmail.com
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